सन ऑफ सरदार 2 - मूवी रिव्यू

 सन ऑफ सरदार 2 फिल्म रिव्यू 


भाई, अजय देवगन की 'सन ऑफ सरदार 2' देखी? देखो, ये फिल्म खुद भी कनफ्यूज्ड है कि उसे बनना क्या था – कॉमेडी, सोशल मैसेज, या बस टाइमपास। और इसी कन्फ्यूजन में कुछ-कुछ सही चीजें कर भी जाती है, और ढेर सारी गड़बड़ियां भी! इंडियन कॉमेडी फिल्मों में बिना प्रॉब्लमेटिक पंच के मजा ही क्या, और ये भी कोई एक्सेप्शन नहीं है। फिल्म खुद को सुधारने का कोई टेंशन नहीं लेती – जैसी है, वैसी ही है! शायद याद तो न रखो, पर इसके जोक्स या सीन मीम्स में घूमते मिल जाएंगे, खासकर जब नो-ब्रेनर कॉमेडी की बात चले।



कहानी 

जस्सी (अजय देवगन) की शादी हो चुकी है, बीवी स्कॉटलैंड में है। जनाब का वीजा फाइनली लग जाता है, वो बीवी से मिलने जाता है, वहां पहुंचता है तो पता चलता है – तलाक चाहिए! बेचारा जस्सी दुखी होकर नई छत तलाशता है और वहां जा कर चार-पांच पाकिस्तानी रूममेट्स के साथ फंस जाता है। वो लोग कभी जस्सी की मदद कर चुके हैं, तो जस्सी भी उनके फैमिली फंक्शन में मदद करने में लग जाता है। डिटेल में बता दूं तो भी समझ नहीं आना, क्योंकि फिल्म में लॉजिक या रियलिज्म ढूंढना बेकार है। फिर भी, इसे पूरी तरह से खारिज भी नहीं किया जा सकता।



असल में, ये फिल्म खुद ही अपनी गलतियों को सीरियसली नहीं लेती, न ही अच्छाइयों पर खुद को शाबाशी देती है। मैंने इसे देखने से पहले 'धड़क 2' देखी थी – बिल्कुल अलग मूड का सिनेमा। वैसे भी मुझे कुछ खास उम्मीद नहीं थी, पर 'सन ऑफ सरदार 2' ने सरप्राइज दे दिया। कब आखिरी बार इतनी अनइंटेंशनल सेंसिटिविटी वाली फिल्म देखी थी, याद भी नहीं।


कमाल की बात ये है कि फिल्म इंडिया-पाक मसला, LGBTQ, फैमिली, तलाक – सबकुछ छू जाती है और वो भी बिना कोई बवाल किए। दीपक डोबरियाल ट्रांसवुमन का रोल कर रहे हैं, मगर फिल्म उसे न स्पेशल फील करवाती है, न मजाक बनाती है, बस एकदम सिंपल रखती है। ये नॉर्मलाइजेशन शायद फिल्म का सबसे पॉजिटिव पॉइंट है।


अब गलतियां – भाई, गलतियां तो भर-भर के हैं। रवि किशन का किरदार इंग्लिश में कच्चा है, भेड़ों के कीड़ों को 'टिक्स' की जगह जो नाम देता है, वो न फनी है, न समझदारी। और भी प्रॉब्लमेटिक बातें हैं – दो अच्छी बातें चार बुरी बातों को माफ नहीं कर सकतीं, ये याद रखना।


फिल्म का एक सीन तो किल्लर है – जस्सी (अजय) खुद को कर्नल बताता है, और फिर 'बॉर्डर' फिल्म के सनी देओल के डायलॉग्स मारने लगता है, फिर सुनील शेट्टी, जैकी श्रॉफ – भाई, पूरा फुल ऑन स्पूफ! ये सीन सच में मजेदार है, बाकी फिल्म को भी थोड़ा बचा लेता है।



एक्टिंग की बात करें तो, रवि किशन जबरदस्त – शायद उनके करियर का नया टर्निंग पॉइंट बन जाए। अजय देवगन हीरो हैं, लेकिन लिमिटेशंस में फंस गए। दीपक डोबरियाल ने जो ट्रांसवुमन का रोल किया, उसमें कोई दिखावा नहीं, बड़ी सिंपल, बढ़िया परफॉर्मेंस। चंकी पांडे का रोल छोटा लेकिन काम का – 'पाकिस्तान जिंदाबाद' बोल देता है, और मजे की बात – न कोई बवाल, न बेकार की कंट्रोवर्सी, क्योंकि सीक्वेंस सही हैंडल किया गया है। न पाकिस्तानियों को नीचा दिखाया, न हिंदुस्तानियों को।


तो फाइनल वर्ड – 'सन ऑफ सरदार 2' एक फन फिल्म है, पॉलिटिकली करेक्ट होने का कोई प्रेशर नहीं लिया। अगर बहुत उम्मीदें लगा लीं तो फिल्म बिखर जाएगी, लेकिन दिमाग घर पर छोड़कर देखोगे तो मजा आ सकता है। सीरियसली मत लेना, यही इसकी यूएसपी है।

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